आज धुंध को सूरज से लड़ते देखा,
ज़िद थी कि नहीं हटूंगी, यहीं रहूंगी|
सूरज क़ी रौशनी भी फिकी पड़ने लगी,
मानो ज़िद के आगे झुकने लगी||
फिर सूरज का धुंधला चेहरा देखा
आनंदमय, करुणामय, रसपूर्ण किन्तु सावधान!
धुंध क़ी चंचलता को निहारता, मुस्कुराता;
मानो प्रिया का नृत्य देखता||
दिल क़ी बात एक दूजे को बताते|
ना जाने क्या समझौता हुआ
इनका व्यवहार मेरी समझ से परे हुआ||
देखा मैंने धुंध को छंटते|
दो प्रेमियों के आलिंगन में
धुंध का अस्तित्व सिमटता गया||
देखा, देखा मैंने सारा दृश्य
पर ना जाने क्या रह गया?
जीत तो सूरज क़ी रौशनी क़ी हुई,
किन्तु चर्चा फिर भी धुंध क़ी रही||